भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने शुक्रवार को आरोप लगाया कि पंजाब के किसानों के आंदोलन की आड़ में खालिस्तानी एजेंडे का प्रचार किया जा रहा है और कांग्रेस पर आरोप लगाया – जो राज्य में पद पर है – कट्टरपंथी तत्वों के साथ गठबंधन करने की।
बीजेपी आईटी सेल प्रभारी अमित मालवीय ने किसानों के विरोध प्रदर्शन का एक कथित वीडियो ट्वीट किया जिसमें एक आदमी को पीएम इंदिरा गांधी की हत्या का हवाला देते हुए सुना गया है, पीएम मोदी को धमकी देने के लिए उनकी 3 दिसंबर की चर्चा है कि सरकार के साथ उनकी कृषि संबंधी शिकायतों को हल करने में विफल रही ।
31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षकों द्वारा हत्या कर दी गई थी, जब पंजाब में खालिस्तानी विद्रोह हुआ था। हत्या के बाद ऑपरेशन ब्लूस्टार ने स्वर्ण मंदिर पर घेराबंदी की – जिसके कारण खालिस्तानी विद्रोही जरनैल सिंह भिंडरावाले की हत्या हुई – जो चार महीने पहले हुई थी।
वीडियो में व्यक्ति को “इंदिरा ठोक दी, मोदी की छटी पार…”कहते हुए सुना जाता है, इससे पहले कि उसके शब्दों को समझना मुश्किल हो जाए। वीडियो में खालिस्तान-संबंधित बैनर के बारे में कुछ विरोध स्थलों पर पॉपिंग मीडिया रिपोर्ट भी शामिल हैं।
तजिंदर बग्गा, जो दिल्ली बीजेपी के प्रवक्ता हैं, ने भी कई वीडियो पोस्ट किए और रीट्वीट किए गए पोस्ट में कहा कि किसानों का विरोध राजनीतिक रूप से प्रेरित है, और इसके लिए कांग्रेस को दोषी ठहराया।
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“कोई भी व्यक्ति जो खालिस्तान जिंदाबाद’ का नारा उठाता है, वह कभी किसान नहीं हो सकता। किसान देशभक्त है, किसान देश के खिलाफ नहीं जा सकता। जो लोग ind खालिस्तान जिंदाबाद ’के नारे लगा रहे हैं, वे कांग्रेस के एजेंट हैं,” उन्होंने ट्वीट किया।
मालविया के ट्वीट के बाद मीडिया ने भी अपना फोकस किसान आंदोलन से हटा कर खालिस्तानी केंद्रित शुरू कर दिया ताकि लोगों का ध्यान आंदोलन से हटा कर खालिस्तानी अजेंडा के रूप में पेश किया जाए।
जैसे ज़ी न्यूज़ पर सुधीर चौधरी के DNA के हेडिंग था “क्या किसानों के विरोध के पीछे खालिस्तानी एजेंडा है? इस विस्तृत रिपोर्ट के साथ देखें”।
वही इंडिया टीवी के हेड रजत शर्मा ने ट्विट्टर पर लिखा “कैसे राजनेता, बिचौलिए किसानों को गुमराह कर रहे हैं”।

यहाँ तक की टीवी9 भारतवर्ष ने अपने शो में खालिस्तानी अजेंडा ढूंढ भी लिया और लिखा “खलिस्तान के निशाने पर अन्नदाता – पंजाब-हरियाणा के किसानों को खलिस्तान ने मोहरा बनाया”।

आपको बता दे कि इन चैनलों पर अक्सर ये आरोप लगते हैं कि ये सरकार से सवाल नहीं करते और एक तरह से सरकार के लिए काम करते हैं। जाहीर सी बात है कि सिर्फ कुछ खास चैनलों का ही इस आंदोलन को खलिस्तान रूप दिखाना यह सवाल खड़ा करता है कि क्या सरकार के इसारे पर कुछ मीडिया चैनल इस आंदोलन को खलिस्तान से जोड़ रहें है या मोदी सरकार इस कदर किसानों से डरी हुई है कि वह किसी भी हाल में इस आंदोलन को बड़ा नहीं होने देना चाहती है और इसे दबाने के लिए ही इसे खलिस्तानियों से जोड़ा जा रहा ?